आस्था और परम्परा,  ऐसा लोनिंग सिस्टम जिसमें चंद मिनटों में देवता कम दरों में देते हैं ऋण

देवभूमि हिमाचल को देवताओं की भूमि कहे जाने के पीछे अनेकों तर्क हैं लेकिन आज आपके सामने एक ऐसा तर्क रखने जा रहे हैं, जिससे वर्तमान में भी देवताओं की दयालुता को प्रत्यक्ष तौर पर देखा जा सकता है। पहाड़ी प्रदेश बैंकों और फाइनेंस कंपनियों की ओर से हाल ही में  केवल बैंकों और प्राइवेट फाइनेंस कंपनियों की ओर से ही जरूरतमंदों को लोन नहीं दिया जाता है बल्कि देवी देवता भी लोगों को जरूरत पड़ने पर उन्हें बैंकों से भी कम ब्याज पर लोन की सुविधा प्रदान करते हैं। जी हां सुनने में यह कुछ अटपटा सा लग रहा है लेकिन यह सच है प्रदेश के कई क्षेत्रों में देवी देवता लोगों को कम ब्याज दरों और चंद मिनटों में आसानी से ऋण मुहैया करवाते हैं। देवताओं की ओर से ऋण देने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और सिरमौर, कुल्लु, शिमला, लाहौल स्पीति और किन्नौर में यह देव परंपरा अभी भी जारी है। सिरमौर जिला के गत्ताधार क्षेत्र में शिरगुल महाराज देवता और सिलाई ब्लाक के खड़कांह में महासू देवता की ओर से लोगों को बिना ज्यादा औपचारिक्ताओं के आसानी से लोन दिया जाता है। देवताओं के उपर आस्था का यह आलम है कि अभी तक किसी भी देवता की ओर से दिए जाने वाले लोन को किसी व्यक्ति ने वापस न किया हो ऐसा एक भी मामला प्रदेश में कहीं भी दर्ज नहीं किया गया है। देवताओं की ओर से दिए जाने वाले लोन की खासियत यह भी है कि यदि कभी किसी लोन लेने वाले व्यक्ति प्राकृतिक आपदा से प्रभावित होता है तो मंदिर कमेटी की ओर से आम सहमति बनने के बाद लोन की राशि को माफ भी कर दिया जाता है। देवताओं की ओर से दी जाने वाली यह सुविधा केवल उस देवता के अधिकारक्षेत्र में आने वाले गांवों के लोगों को ही मुहैया करवाई जाती है।
 मंदिर कमेटी और मुख्य कारदार की सहमति से दिया जाता है ऋण
सिरमौर के गत्ताधार में स्थित शिरगुल महाराज देवता के भंडारी जीत सिंह ने बताया कि देवताओं की ओर से दिए जाने वाले ऋण को अनुमति मंदिर कमेटी की सहमति से दी जाती है। उन्होंने बताया कि ऋण मांगने वाला व्यक्ति मंदिर कमेटी के किसी भी सदस्य के पास अपनी ऋण की मांग करता है इसके बाद मंदिर कमेटी की आरे से उनकी मांग पर गौर किया जाता है और इस दौरान यह भी देखा जाता है कि ऋण मांगने वाला व्यक्ति डिफाल्टर तो नहीं है और मांगी गई ऋण की राशि को वापस करने की मादा भी रखता है। इन बातों पर गौर करने के बाद मंदिर कमेटी और मुख्य कारदार की सहमति के बाद उसे ब्याज की दर तय करके ऋण दे दिया जाता है।
मासिक किस्तों में भी अदा किया जाता है लोन
सिलाई ब्लाक के खडकांह के महासू देवता की मंदिर कमेटी के पूर्व सदस्य दीप राम शर्मा ने बताया कि देवता की ओर से दिए जाने वाले ऋण का फैसला मंदिर की जनरल मीटिंग में लिया जाता है। इस मीटिंग में कितना ऋण कितनी अवधी के लिए दिया जाना है और इस ऋण को किस प्रकार वापस किया जाना है के बारे में चर्चा कर ऋण दिया जाता है। उन्होंने बताया कि ऋण की राशि को मासिक किस्तों और एकमुश्त में भी अदा किया जाता है जो कि मंदिर कमेटी की ओर से तय की जाती हैं। उन्होंने बताया कि यह ऋण केवल देवता की परिधि में आने वाले गांवों के ग्रामिणों को ही दी जाती है। बाहरी क्षेत्र के लोगों को यह सुविधा नहीं दी जाती है।
 देवताओं की आय के हैं अनेक साधन
हिमाचल प्रदेश की देवी देवताओं के आय के अनेक साधन है। इनमें से देवताओं को भक्तों की ओर से चढ़ाया जाने वाला चढ़ावा आय का प्रमुख साधन है। इसके अलावा कई देवताओं के अपने सेब और अन्य फलों के बगीचे होते हैं जिन्हें लीज पर देकर देवताओं को आय होती है। वहीं देवी देवताओं की ओर से दिए जाने ऋण पर मिलने वाले ब्याज से भी देवताओं की आय होती है।
 लोन लेने की यह होती है प्रक्रिया
देवी देवता अपने प्रभाव क्षेत्र के अधीन आने वाले गांवों के लोगों को लोन देते हैं। लोन लेने के लिए किसी जरूरत मंद को मंदिर कमेटी या देवी देवता के कारदार के समक्ष मौखिक आवेदन देना होता है। इसके इसके बाद मंदिर कमेटी की ओर से एक मीटिंग की जाती है और इस मीटिंग में जरूरत मंद को लोन दिए जानेए उसकी जरूरत और उसके गारंटर के बारे में विचार करके उसे लोन देने की अवधी और राशि के बारे में तय किया जाता है।  
 रजिस्टर में तीन कॉलम में होती है लोन की एंट्री
देवता की ओर से दिए जाने वाले हरेक ऋण की एंट्री एक रजिस्टर में की जाती है। इसे तीन कॉलम में दर्ज किया जाता है जिसमें पहले कॉलम में लोन लेने वाले का नाम और पता दर्ज किया जाता है। दूसरे कॉलम में श्योरिटी देने वाले का नाम और पता व हस्ताक्षर लिए जाते हैं। तीसरे कॉलम में लोन की राशि और ब्याज की दर का दर्ज किया जाता है। देवताओं की ओर से केवल कैश ही लोन में नहीं दिया जाता बल्कि अनाज भी ऋण के रूप में दिया जाता है। कैश के रूप में ली गई राशि को कैश के रूप में ही ब्याज सहित अदा करना होता है। जबकि ऋण के रूप में लिए गए अनाज को कैश या फिर अनाज के रूप में वापस किया जाता है। इसके अलावा अनाज को ऋण के रूप में लेने वाला व्यक्ति आधा अनाज और आधा कैश के रूप में भी ऋण को वापस कर सकता है।  
 ऋण देने की तिथी का भी किया जाता है प्रचार
 देवताओं की ओर से दी जाने वाले ऋण की तिथी का प्रचार भी किया जाता है। इसके लिए मंदिर कमेटी का नुमाइंदा गांव में ऋण दिए जाने की तिथी का प्रचार करता है और लोगों को बताता है कि कब देवता की ओर से लोगों को ऋण आबंटित किया जाएगा। अमुमन सभी देवताओं की ओर से हिंदु नववर्ष 13 अप्रैल को लोन दिए जाने का कार्यक्रम रखा जाता है। देवी देवताओं की ओर से लोगों को ऋण एक वर्ष की अवधी के लिए ही दिया जाता है। 


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