भविष्य में आने वाले खतरों के प्रति चेताती आईपीसीसी रिपोर्ट

दुनिया के पर्यावरण में पैनी नजर रखने वाली आईपीसीसी की रिपोर्ट में हिमालयन क्षेत्र और कोस्टल एरिया के लोगों को खासकर चेताया गया है। पर्यावरण में तेजी से आ रहे बदलावों का यदि सबसे अधिक असर देखने को मिलेगा तो इन्हीं क्षेत्रों के लोगों के उपर सबसे अधिक खतरा मंडरा रहा है। जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी जलवायु परिवर्तन पैनल (आईपीसीसी) ने 2013 के बाद जारी अपनी छठी असेसमेंट रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के खतरे को लेकर न सिर्फ आगाह किया है। बल्कि मानव जाति को चेताया भी है। हाल ही में आई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिंग कैसे हमारे आज और भविष्य पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाली है। रिपोर्ट में 1400 से अधिक वैज्ञानिक दस्तावेजों से लिए इनपुट के आधार पर बनाई गई इस रिपोर्ट में जलवायु में आए बदलावों को बेहद डरावना बताया गया है। इस रिपोर्ट में दुनिया भर के पर्यावरण में आने वाले बदलाओं और प्राकृतिक आपदाओं के बारे में बताया गया है जिससे हमारा हिमालयी क्षेत्र भी अच्छूता नहीं है। रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्रीन हाउस गैसें बढ़ रही हैं जिससे तापमान में वृद्धि हो रही है। जिससे भविष्य में प्राकृतिक आपदाओं की संख्या में बढ़ोतरी के साथ समुद्र के साथ सटे इलाकों के पानी में समा जाने का खतरा पैदा हो गया है। वहीं उंचाई वाले क्षेत्रों में ग्लेशियरों के पिघलने की गति में भी बढ़ोतरी होगी। जिससे सबसे अधिक असर पीने के पानी और खेती पर पड़ेगा।

रिपोर्ट में बताया गया है कि बीते चार दशकों से सदी के किसी भी दशक (1850 के बाद के दशक) की तुलना में लगातार वैश्विक तापमान में वृद्धि देखी गई है। 21 वीं सदी के पहले दो दशकों (2001 से 2020) में 1850-1909 के मुकाबले तापमान में 0.99 डिग्री सेल्सियस से अधिक वृद्धि देखी गई। वहीं वैश्विक तापमान में 2011-2020 के बीच 1.09 डिग्री सेल्सियस वृद्धि देखी गई।

रिपोर्ट में वैज्ञानिकों का एक अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर 2003-2012 के बीच वातावरण $0.19 डिग्री सेल्सियस गर्म रहा। इसके अतिरिक्त नए आंकड़ों के अनुमान के अनुसार यह वृद्धि लगभग 0.1 डिग्री सेल्सियस रही। कुल मिलाकर मानवीय गतिविधियों के कारण 1850-1900 से 2010-2019 के बीच वैश्विक तापमान में वृद्धि 0.8 से बढ़कर 1.3 डिग्री सेल्सियस हो गई।

मानव प्रभाव के कारण ग्लेशियरों की क्षेत्रीय और आंतरिक स्तर की प्रवृत्तियां में प्ररितर्वनशीलता अधिक देखी गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि 1950 के बाद से उत्तरी गोलार्ध में बर्फ कम जमी और इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि इसका कारण मानव प्रभाव रहा। पिछले दो दशक में ग्रीनलैंड में बर्फ की सतह पिघलने में मानव प्रभाव का बहुत अधिक योगदान रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 1970 से ऊपरी महासगरीय क्षेत्र मानवी प्रभाव के कारण अधिक गर्म हुए। इसके कारण वैश्विक स्तर पर औसत समुद्री स्तर में 1901 और 2018 के बीच 0.20 मीटर की वृद्धि दर्ज की गई। हालांकि 1970 के बाद से भूमि की प्रवृत्ति में बदलाव वैश्विक तापमान में वृद्धि के अनुरूप है।

पूर्वानुमानों को लेकर अपने बयान में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि आईपीसीसी कार्यकारी समूह-1 की रिपोर्ट मानवता के लिए खतरे की घंटी है।’ रिपोर्ट जारी होने के समय को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, जब दुनिया के सारे महाद्वीपों को मौसमी घटनाओं ने अपने कब्जे में जकड़ रखा है। गुटेरेस के मुताबिक, ‘इस घंटी का शोर हमारे कानों को बहुत जोर से सुनाई पड़ रहा है और इससे इनकार करना नामुमकिन है। जीवाश्मों के जलने से उत्सर्जित होने वाली ग्रीनहाउस गैसों और जंगलों के लगातार कटते जाने से दुनिया का दम घुट रहा है और अरबों लोगों का जीवन खतरे में पड़ गया है। तापमान बढ़ने से धरती का हर इलाका प्रभावित हो रहा है। इनमें से कई बदलाव ऐसे हैं, जो अब अपरिवर्तनीय बन रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘सभी देशों, विशेषकर जी-20 और ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाले देशों को 2021 के संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन से पहले साथ आने की जरूरत है ताकि ऐसा मंच बने जो शून्य उत्सर्जन के लिए काम करे।’ 26वां संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, यूनाइटेड किंगडम की अध्यक्षता में 31 अक्टूबर से 12 नवंबर 2021 तक ग्लासगो शहर में आयोजित होने वाला है। उन्होंने सुझाया कि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने के लिए उन्होंने कोयले और जीवाश्मों के ईंधन के रूप में दो ऐसे एनर्जी सेक्टर के तौर पर चिन्हित किया, जिन पर तत्काल नियंत्रण की जरूरत है।

रिपोर्ट की मुख्य बातें

1. अगले 20 बरस में वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगा। पिछला दशक बीते 1.25 लाख वर्षों के मुकाबले काफी गर्म था, जो 1850 से लेकर 1900 के बीच के मुकाबले 2011 से 2020 के दौरान 1.09 डिग्री तापमान अधिक दर्ज किया गया।

2. यदि वर्तमान की तरह ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन जारी रहा तो 21 वीं सदी के मध्य में ही वैश्विक तापमान 2 डिग्री सेल्सियस सीमा को पार कर जाएगा

3. तापमान में प्रत्येक 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि भारी से भारी बारिश की घटनाओं की तीव्रता को 7 फीसदी बढ़ा देगी

4. कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता 20 लाख वर्षों में सबसे अधिक है

5. समुद्री जलस्तर में वृद्धि 3,000 वर्षों में सबसे तेज है

6. आर्कटिक समुद्री बर्फ 1,000 वर्षों में सबसे कम है

7. अगर हम अपने ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को नियंत्रित कर भी दें, तब भी अगले 1,000 वर्षों तक बर्फ का पिघलना जारी रहेगा

8. महासागरों का गर्म होना जारी रहेगा, यह 1970 के दशक से 2 से 8 गुना बढ़ गया है

9. समुद्र के स्तर में वृद्धि सैकड़ों वर्षों तक जारी रहेगा

यह रिपोर्ट में हिमालयी क्षेत्र जिसमें कि हमारा हिमाचल प्रदेश भी आता है उसे अधिक संवेदनशील बताया गया है। इसलिए हमें मौके की गंभीरता को समझते हुए अपनी दिनचर्या में ग्रीन गुड डिड्स को अपनाना चाहिए। ताकि पर्यावरण में तेजी से आ रहे बदलावों की गति को कम किया जा सके और भविष्य की चिंताओं से मुक्ति पाई जा सके। इसके साथ ही पर्यावरण में आ रहे बदलावों के प्रति संजीदा होते हुए अभी से इससे निपटने के लिए तैयारी शुरू कर देनी चाहिए।

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